आर बनाम गोविंदा 18 जुलाई 1876 - बॉम्बे हाईकोर्ट। R vs Govinda 18 July 1876 - Bombe High Court.
आर बनाम गोविंदा केस की पूरी कहनी -
Story. - शाम के समय गोविंदा (18 साल) और उसकी पत्नी (12-13 साल) का झगड़ा हुआ। जिसके पश्चात गोविंदा ने अपनी पत्नी को मुक्के मारने शुरू कर दिए लेकिन इससे कुछ ज्यादा तो नहीं हुआ लेकिन उसकी पत्नी नीचे गिर गई। उसके बाद गोविंदा अपने पैर का घुटना उस महिला की छाती पर रखकर उसके फेस पर मुक्के मारने लगा जिससे उसकी पत्नी कि दिमाग की नस फट गई और दिमाग में खून फैल गया इसके पश्चात वहीं पर महिला की मृत्यु हो गई।
इसके पश्चात गोविंद को मुंबई के सतारा कोर्ट में पेश किया गया और कोर्ट ने उसे मर्डर के आधार पर सजा सुनाई। जब सजा की पुष्टि हेतु यह केस मुंबई हाईकोर्ट में गया तो 2 जजों की बेंच ने उसे सुना और दोनों ने अलग-अलग फैसला दिया। एक ने मर्डर बताया तो दूसरे ने आपराधिक मानव वध।
फर्क सिर्फ इतना था कि अगर उसे मर्डर के आधार पर सजा सुनाई जाती तो सजा कुछ ज्यादा होती और अपराधिक मानव वध में कम।
तीसरे जज जस्टिस मेलबर्न ने हत्या और मानव वध (गैर इरादतन हत्या) में अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि कहा कि अगर एक्ट ऐसा है जिस में थोड़ी बहुत संभावना है मृत्यु होने की तो है आपराधिक मानव वध है लेकिन अगर निश्चय है कि मृत्यु हो जाएगी तो वह मर्डर है।
अंततः गोविंदा को आपराधिक मानव वध के आधार पर 7 साल की सजा सुनाई गई।
आर बनाम गोविंदा केस का माहत्व -
आर बनाम गोविंदा केस में न्यायालय द्वारा हत्या और मानव वध (गैर इरादतन हत्या) में अंतर स्पष्ट किया गया। न्यायालय द्वारा कहा गया कि अगर एक्ट ऐसा है जिस में थोड़ी बहुत संभावना है मृत्यु होने की तो है आपराधिक मानव वध है लेकिन अगर निश्चय है कि मृत्यु हो जाएगी तो वह मर्डर है।
आर बनाम गोविंदा केस के महत्वपूर्ण बिंदु - आर बनाम गोविंदा केस के महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित है।
• हत्या और मानव वध में अंतर - आर बनाम गोविंदा केस का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व यह है कि सर्वप्रथम इसी केस में हत्या और मानव वध के बीच अंतर स्पष्ट किया गया।
• ऐतिहासिक महत्व - आर बनाम गोविंदा केस ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि सर्वप्रथम आर बनाम गोविंदा के केस में ही हत्या और मानव वध के बीच अंतर स्पष्ट किया गया।
आर बनाम गोविंदा केस में न्यायालय का निर्णय -
आर बनाम गोविंदा केस में न्यायालय द्वारा अभियुक्त गोविंदा को अपराधिक मानव वध (गैर इरादतन हत्या) का दोषी मानते हए 7 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई।
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